मुंबई
जून के महीने में एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से बगावत करके शिवसेना के विधायकों को लेकर पहले गुजरात और फिर असम के एक रिजॉर्ट में डेरा जमा दिया था। यह वो वक्त है जिसके बाद से उद्धव ठाकरे के बुरे दिन शुरू हुए। इस घटना को हुए चार महीने हुए हैं और इतने कम वक्त में उद्धव ठाकरे से पहले शिवसेना के विधायकों और सांसदों ने किनारा करना शुरू किया। फिर सीएम पद गया और अब शिवसेना सिंबल पर दांव लगा है। कुल मिलाकर उद्धव ठाकरे सिर्फ दशहरा रैली के दौरान शिवाजी पार्क ही बचा पाए लेकिन, उसमें भी एकनाथ शिंदे ने दशहरे के दिन मुंबई में ही दूसरी जगह पर रैली करके उद्धव को पूरी चुनौती दी।
शनिवार को बड़ा फैसला लेते हुए चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे और उद्धव गुट के लिए शिवसेना सिंबल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इस फैसले ने सबसे ज्यादा चोट उद्धव ठाकरे गुट को दिया है। एकनाथ शिंदे कैंप की बात करें तो वो हालांकि खुद को असली शिवसेना कह रहे थे लेकिन, सिंबल तो बालासाहेब के बेटे उद्धव ठाकरे प्रयोग में ला रहे थे। चुनाव आयोग ने फौरी राहत जरूर दी कि दोनों गुट अपने नए सिंबल में शिवसेना के नाम यूज कर सकते हैं।
क्या-क्या गंवा चुके हैं उद्धव
बालासाहेब ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ा रहे उनके बेटे उद्धव ठाकरे इस वक्त अपने राजनीतिक करियर के सबसे मुश्किल दौर में हैं। पार्टी के एक नेता की बगावत को हल्के में उन्हें इतना भारी पड़ेगा, उन्होंने शायद ही सोचा हो। एकनाथ शिंदे ने जून महीने में बगावत करके शिवसेना के विधायकों को भरोसे में लिया। पहले गोवा और फिर असम के रिजॉर्ट में डेरा जमा लिया। उद्धव ने जब नेगोशिएट करने से इनकार कर दिया तो शिंदे ने अपना कुनबा बड़ा करना शुरू किया। और विधायक जुड़ते रहे और फिर सांसद और पार्षदों ने उद्धव से किनारा करना शुरू किया। धीरे-धीरे उद्धव के पास ज्यादा प्रतिनिधियों का समर्थन चला गया और वो सत्ता गंवा बैठे। उधर, भाजपा के साथ मिलकर शिंदे ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई और खुद को असली शिवसैनिक बताकर चुनाव आयोग के पास जाकर दावा ठोक दिया। अब आयोग ने शिवसेना सिंबल पर भी उद्धव को झटका दिया है।