कोंडागांव में ड्रैगन फ्रूट की खेती में मिली सफलता

कोण्डागाँव
फल बाजार में पिछले कुछ वर्षों से विदेशी फल ड्रैगन फ्रूट ने अपनी खासी पकड बना ली है। इस फल की खेती करने वाले राज्यों में छत्तीसगढ भी शुमार हो गया है। सूबे के आदिवासी बाहुल्य कोंडागांव को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दिलाने वाले मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर ने ड्रैगन फ्रूट की खेती कर फिर एक नया इतिहास गढा है।

मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर के संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह मूल रूप से मेक्सिको का पौधा माना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम वाइट-फ्लेशेड-पतिहाया है तथा वानस्पतिक नाम हायलेसिरस अनडेटस है। वियतनाम,चीन तथा थाईलैंड में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है और भारत में इसे वहीं से आयात किया जाता है। अब तक इसे अमीरों और तथा रईसों का ही फल माना जाता था पर लेकिन अब जल्द ही यह आम लोगों तक भी पहुंच में होगा। बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस फल में अद्भुत पोष्टिक तथा औषधीय गुण पाए जाते हैं। इस बेहद स्वादिष्ट फल में भरपूर मात्रा में एंटी आॅक्सीडेंट्स, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स और कैलशियम आदि पाया जाता है। यही कारण है कि इसे वजन घटाने में मददगार, कोलेस्ट्राल कम करने में सहायक और कैंसर के लिए लाभकारी बताया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का विशेष गुण होने के कारण कोरोना काल में इसका महत्व काफी बढ़ गया। इन्हीं कारणों से पूरी दुनिया के लोग इसके दीवाने हैं। वैसे भारत में कई राज्यों में किसानों द्वारा इसकी खेती के प्रयोग हो रहे हैं।गुजरात के कच्छ, नवसारी और सौराष्ट्र जैसे हिस्सों में बड़े पैमाने पर उगाया जाने लगा है। छत्तीसगढ़ में भी कई प्रगतिशील किसानों ने इसकी खेती शुरू की है। बस्तर क्षेत्र के जगदलपुर में भी कुछ प्रगतिशील किसानों ने उसकी खेती में सफलता प्राप्त की है।

कोंडागांव में संभवत पहली बार मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर ने इसकी खेती लगभग दो साल पूर्व प्रारंभ किया था, तथा शुरूआत में इनके द्वारा लगभग 1000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए गए थे। वर्तमान में इसमें अच्छी तादाद में फल आने शुरू हो गए। इस उपलब्धि के बारे में मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर की संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी जी मीडिया से बात करते हुए बताया कि यह कोंडागांव ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के लिए गर्व तथा खुशी का विषय है, कि कोंडागांव में पैदा किए जा रहे ड्रैगन फ्रूट का न केवल स्वाद तथा रंग बेहतरीन है बल्कि औषधीय गुणों व पौष्टिकता के हिसाब से भी यह उत्तम गुणवत्ता का है। इसका स्वाद भी बेजोड़ है। डॉक्टर त्रिपाठी ने आगे बताया कि बस्तर की जलवायु तथा धरती इसकी खेती के लिए सर्वथा उपयुक्त है। हम ने सिद्ध कर दिया कि यहां पर ड्रैगन फ्रुट की सफल खेती की जा सकती है। आॅस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की सफल खेती के साथ ही पेड़ों के बीच वाली खाली जगह में ड्रैगन फ्रूट की मिश्रित खेती भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। ड्रैगन फ्रूट का पौधा कोई विशेष देखभाल भी नहीं मांगता और केवल एक बार लगाने पर पच्चीसों साल तक लगातार भरपूर उत्पादन और नियमित आमदनी देता है। कैक्टस वर्ग का कांटेदार पौधा होने के कारण इसे कीड़े मकोड़े भी नहीं सताते और जानवरों के द्वारा इस पौधे को बर्बाद करने का डर भी नहीं रहता है। एक बार रोपण के बाद, इसकी सफल खेती से किसान बिना किसी विशेष अतिरिक्त लागत के 1 एकड़ से चार-पांच लाख रुपए सालाना अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। आस्ट्रेलियन टीक के रोपण के साथ काली मिर्च व औषधीय पौधों के साथ मिश्रित खेती करने पर यह आमदनी द्विगुणित, बहुगुणित हो सकती है। इसकी भारी मांग होने के कारण इसकी मार्केटिंग में भी कोई समस्या नहीं है।

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