भोपाल
जनजातीय संग्रहालय में अंतरराष्ट्रीय बुंदेली समागम का आयोजन किया गया। इसमें एक्टर आशुतोष राणा ने शिरकत की। उन्होंने बुंदेली, बुंदेलखंड और रामराज्य पर चर्चा की। भगवान राम ने चित्रकूट में साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए। यहां भक्ति, शक्ति और युक्ति का प्रभुत्व रहा है। ऐसी धरती पर नर ही नहीं, नारायण का भी मन रम जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भाषा, व्यवहार, ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, खान-पान सभी कुछ है। यदि इस सृष्टि का कभी विनाश होता है और भारत इससे बचता है तो हम फिर से इसकी रचना कर सकते हैं। जिस तरह भारत का बीज पुंज मप्र है, उसी तरह मप्र का बीज पुंज बुंदेलखंड है। यहां की पृष्ठभूमि ऐसी रही है कि राजा लव की 38वीं पीढ़ी में हुए राजा हेमकरण ने देवी विंध्यवासिनी को प्रसन्न करने तप किया। मां प्रसन्न नहीं हो रही तो उन्होंने सोचा कि ऐसे जीवन का अर्थ ही क्या है, उन्होंने गर्दन पर तलवार रख उसे काटने का निश्चिय किया। तभी देवी मां प्रसन्न होकर उनके समक्ष आ गई। उस वक्त रक्त की पांच बूंद वहां गिरीं, उसे बूदों वाला क्षेत्र कहा जाने लगा। कालांतर में इसे बुंदेलखंड कहा गया। उन्होंने कहा कि हम ये जानते हैं कि शक्ति को साधा नहीं जा सकता, उसे सिद्ध किया जा सकता है। जिस क्षेत्र की उत्पत्ति के मूल में ही भक्ति हो, वहां परमात्मा तो निवास करेंगे ही।
सेना ने राम के संकल्प को ही अपना बना लिया
आशुतोष ने राम गाथा सुनाते हुए कहा कि सुग्रीव ने सेना से कहा कि हम राम रूपी नायक के अधीन हैं, जबकि रावण की सेना का मंतव्य राजा के लाभ से है। हमारे पास संकल्प है और हमने नायक के संकल्प को अपना बना लिया है। दूसरी ओर रावण अपने सहयोगी तो छोड़िए परिजनों को भी अपना नहीं मानता। नायक जन की प्रतिष्ठा के लिए लड़ता है तो राजा मन की प्रतिष्ठा के लिए, हम अपने प्रण की रक्षा करना चाहते हैं। रावण अपने प्राण की रक्षा करना चाहते हैं।