नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देने को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलग हो चुकी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए पति को मजदूरी भी करने पड़े तो कोई दिक्कत नहीं चाहिए। क्योंकि, जरूरत की चीजें उपलब्ध कराना पति का कर्तव्य है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक व्यक्ति की तरफ से याचिका दायर की गई थी। याचिका के जरिए व्यक्ति ने मांग की थी कि उसका व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है और कंपनी भी बंद हो गई है। ऐसे में उसके पास आय का स्त्रोत खत्म हो गया और वह पत्नी व बच्चे को गुजारा भत्ता देने में सक्षम नहीं है। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने याचिका को स्वीकार कर दिया।
साथ ही बेंच ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का प्रावधान सामाजिक न्याय का एक उपाय है, जो विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। ऐसे में बेंच ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज करते हुए कहा कि सक्षम शरीर होने के नाते, वह वैध साधनों से कमाने और अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को बनाए रखने के लिए बाध्य है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के समक्ष पत्नी की तरफ से पेश किए गए साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, और रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों को ध्यान में रखते हुए, अदालत व्यक्ति को पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देना होगा।
मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को 10 हजार और नाबालिग बच्चे को 6 हजार रुपए महीने देने का आदेश दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 की कल्पना एक महिला की पीड़ा और वित्तीय जरूरतों को दूर करने के लिए की गई थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महिला और उसके बच्चों को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए एक पारिवारिक अदालत की खिंचाई भी की। आपको बता दें कि महिला 2010 से पति से अलग रह रही थी। 2010 से ही पति द्वारा उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जा रहा था।