लखनऊ
उत्तर प्रदेश में समाजवादी राजनीति की चर्चा हो तो जनेश्वर मिश्र का नाम लिए बिना यह चर्चा पूरी नहीं होती। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव हों या सपा मुखिया अखिलेश यादव, समाजवाद पर बोलते हुए दोनों ही जनेश्वर मिश्र का नाम जरूरी तौर पर लेते हैं। समाजवादी नेता और कार्यकर्ता जनेश्वर मिश्र को छोटे लोहिया के नाम से भी पुकारते हैं। 5 अगस्त को उन्हीं छोटे लोहिया का जन्मदिन होता है, जिसे समाजवादी बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
जनेश्वर को क्यों कहते हैं छोटे लोहिया
5 अगस्त 1933 को बलिया के शुभ नाथहि गांव में पैदा हुए जनेश्वर मिश्रा समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के बड़े अनुयायियों में गिने जाते हैं। छात्र जीवन में ही उनके ऊपर लोहिया के विचारों का प्रभाव पड़ गया था। समाजवादी युवजन सभा जॉइन करने के बाद मिश्रा पहली बार राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। यूपी के पूर्व मंत्री नारद राय की मानें तो मिश्रा ने राम मनोहर लोहिया के साथ लंबे समय तक काम किया था। इस दौरान उन्होंने लोहिया के विचारों और उनके काम करने के तरीकों को ऐसे अपना लिया था, जैसे वह उनकी परछाईं हों। यही कारण था कि एक बार इलाहाबाद में आयोजित जनसभा में समाजवादी नेता छुन्नू ने कहा था कि जनेश्वर मिश्र के अंदर राम मनोहर लोहिया के सारे गुण हैं और इसलिए वे एक तरह से 'छोटे लोहिया' हैं। इसके बाद से ही जनेश्वर मिश्र का नाम छोटे लोहिया मशहूर हो गया।
फूलपुर से बने सांसद
छोटे लोहिया ने साल 1967 में अपने करियर का पहला संसदीय चुनाव लड़ा था। पहले ही चुनाव में उनकी प्रतिद्वंदी जवाहर लाल नेहरू की बहन और कांग्रेस नेता विजयलक्ष्मी पंडित थीं। इलाहाबाद की मशहूर फूलपुर लोकसभा सीट थी। यह चुनौती छोटे लोहिया के लिए बहुत मुश्किल थी और वह इसमें विफल भी हो गए लेकिन साल 1968 में विजयलक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र चली गईं। इसके बाद फूलपुर में उपचुनाव हुआ और इस बार मिश्र ने बाजी मार ली। उन्होंने कांग्रेस के केडी मालवीय को हराकर चुनाव जीत लिया और पहली बार लोकसभा पहुंचे। फूलपुर सीट से चुनाव जीतने वाले मिश्र पहले गैर-कांग्रेसी नेता थे।
राजनारायण ने भी कहा छोटे लोहिया
लोकसभा में मिश्र की मुलाकात राजनारायण से हुई। राजनारायण भी देश के बड़े समाजवादी नेताओं में गिने जाते हैं। कहा जाता है कि संसद पहुंचने के बाद जनेश्वर मिश्र को सबसे पहले उन्होंने ही छोटे लोहिया कहकर पुकारा था। बाद में यही संबोधन उनकी पहचान बन गया।
वीपी सिंह को हराया
अब यह भले तय न हो कि जनेश्वर मिश्र को किसने सबसे पहले छोटे लोहिया कहा था लेकिन अपनी सादगी और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण लोगों को उनमें राम मनोहर लोहिया का अक्स दिखता रहा और लोग उन्हें आज भी छोटे लोहिया कहकर ही याद करते हैं। छोटे लोहिया की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 1977 में उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी विश्वनाथ प्रताप सिंह को 89 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हरा दिया था। इस हार के तीन साल बाद ही वीपी सिंह पहले यूपी के मुख्यमंत्री बने और बाद के सालों में देश के प्रधानमंत्री का भी दायित्व संभाला।