छतरपुर
अगस्त का महीना शुरू हो चुका है लेकिन अब भी निजी स्कूलों में पढ?े वाले कई बच्चे अपनी किताबें नहीं खरीद पाए हैं। जब इसकी मुख्य वजह खोजने का प्रयास किया गया तो पता लगा कि कई स्कूलों की किताबें उन्हीं के द्वारा चिन्हित की गईं दुकानों पर ही मिलती हैं। यह दुकानदार अगर समय पर माल नहीं उठा पाता तो बच्चे परेशान होते हैं। दुकानदारों और स्कूल संचालकों ेके बीच कमीशन को लेकर चल रही साठगांठ किसी से छिपी नहीं है। इस खेल में अब किताब छापने वाले प्रकाशक भी शामिल हो गए हैं जो स्कूलों को मोटा लालच देकर लगभग हर वर्ष पाठ्यक्रम बदलवा देते हैं।
अभिभावक जीतेन्द्र एवं मुकेश ने बताया कि उनके बच्चे को स्कूल में किताबें खरीदने के लिए परेशान किया जा रहा है जबकि स्कूल द्वारा बताई गई दुकान पर किताबें उपलब्ध नहंी हैं। उन्होंने कहा कि एक ही दुकानदार पर इतने बच्चों को किताबें देने का जिम्मा दे रखा है और प्रकाशक किताबें भेज नहीं पाया है। कुल मिलाकर प्रकाशक, स्कूल संचालक और किताब विक्रेता मिलकर एक गठजोड़ बनाते हैं और यही गठजोड़ बच्चों के लिए परेशानी व अभिभावकों के लिए ठगी की वजह बन जाता है।
इनका कहना
इस संबंध में जो भी शिकायत प्राप्त हुई है उसके आधार पर जल्द ही एक कमेटी गठित कर सभी निजी स्कूलों के पाठ्यक्रम की जानकारी ली जाएगी। यदि किताबें चिन्हित और एक ही स्थान पर बेची जा रही हैं तो ऐसे स्कूलों पर कार्यवाही करेंगे। हर वर्ष पाठ्यक्रम बदला जा रहा है तो ऐसे स्कूलों पर भी कार्यवाही होगी।
हरिश्चन्द्र दुबे, डीईओ, छतरपुर