इंदौर
हुकमचंद मिल की जमीन की कीमत छह साल में बढ़ने के बजाय कम कैसे हो गई, आज को मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष इस मुद्दे पर बहस होगी। इसके बाद ही तय होगा कि मिल की जमीन की नीलामी के लिए दोबारा निविदा जारी होगी या पूर्व में जारी निविदा पर ही प्रस्तावकों से प्रस्ताव बुलवाए जाएंगे। मजदूरों को उम्मीद है कि सोमवार को नगर निगम मुआवजे को लेकर कोई अच्छी जानकारी कोर्ट में दे सकता है। ऐसा हुआ तो मजदूरों को बड़ी राहत मिलेगी। पिछली सुनवाई पर नगर निगम के वकील ने कोर्ट को मौखिक रूप से कहा था कि निगम तो मजदूरों को भुगतान करना चाहता है। कोर्ट ने उनसे कहा था कि ऐसा है तो लिखित में बताएं कि भुगतान की कार्ययोजना क्या है।
गौरतलब है कि हुकमचंद मिल के मजदूर पिछले 31 साल से अपने हक के लिए भटक रहे हैं। कोर्ट ने 2007 में उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए 229 करोड़ रुपये मुआवजा तय किया था लेकिन यह रकम अब तक मजदूरों को मिल नहीं सकी। दरअसल मिल की साढ़े 42 एकड़ जमीन को बेचकर मजदूरों का भुगतान किया जाना है। जमीन बेचने के लिए कई बार निविदा बुलवाई जा चुकी है लेकिन जमीन नहीं बिकी। शासन ने जमीन आसानी से बिक सके इसके लिए जमीन का भू-उपयोग औद्योगिक से बदलकर आवासीय और व्यवसायिक भी कर दिया। हाल ही में डीआरटी ने मिल की जमीन बेचने के लिए नई निविदा जारी की है।
इसमें जमीन का आरक्षित मूल्य 385 करोड़ रुपये रखा गया है। मजदूर इसी का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि छह साल पहले जमीन का आरक्षित मूल्य 400 करोड़ रुपये रखा गया था। छह साल में शहर में जमीन के दाम कई गुना बढ़ चुके हैं तो मिल की जमीन का दाम कम कैसे हो सकता है। पिछली सुनवाई पर डीआरटी ने अपने जवाब में कहा था कि उसने जमीन का आरक्षित मूल्य सही रखा है जबकि मजदूर इसे कम बता रहे हैं। सोमवार को इसी मुद्दे पर बहस होना है।